हिंदी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन

हिंदी साहित्य के इतिहास का काल-विभाजन सर्वप्रथम आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने किया । इसके संबंध में उनका मत था कि - जिस कालखंड के भीतर किसी विशेष ढ़ंग की रचनाओं की प्रचुरता दिखाई पड़ती है , वही एक अलग काल माना गया है और उसका नामकरण उन्हीं रचनाओं के स्वरूप के अनुसार किया गया है । किसी एक ढ़ंग की रचना की प्रचुरता से अभिप्राय यह है कि शेष दूसरे ढ़ंग की रचनाओं में से चाहे किसी एक ढ़ंग की रचना को लें, वह परिमाण में प्रथम के बराबर न होगी । ...दूसरी बात है ग्रंथों की प्रसिद्धि । किसी एक काल के भीतर एक ढ़ंग के बहुत अधिक प्रसिद्ध ग्रंथ आते हैं । उस ढ़ंग की रचना उस काल के लक्षण के अंतर्गत मानी जाएगी । ... प्रसिद्धि भी किसी काल की लोक -प्रवृत्ति की प्रतिध्वनि है । इन दोनों बातों की ओर ध्यान रखकर काल-विभाजन का नामकरण किया गया है । आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काल-विभाजन को ही हिंदी साहित्य में मान्यता दी गई है । उनके अनुसार हिंदी साहित्य को निम्नलिखित चार कालों में विभक्त किया जा सकता है : -

१.आदिकाल (वीरगाथाकाल) : सम्वत् १०५० से १३७५
२.पूर्वमध्यकाल (भक्तिकाल) : सम्वत् १३७५ से १७००
३.उत्तर-मध्य काल (रीतिकाल) : सम्वत् १७०० से १९००
४.आधुनिक काल : सम्वत् १९०० से अब तक

टिप्पणियाँ

  1. is jaankari ke liye bahut bahut dhanyawaad.......

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    mere sawaal pe aapne comment diya tha.....uska result aa gaya hai...... plz blog dekhen.... aur apna view den......


    dhanyawaad


    mahfooz

    www.lekhnee.blogspot.com

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  2. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ! मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने!

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  3. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. ati uttam aap ne bahut hi achi jankari di hai

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  5. उत्तर
    1. टिप्पण अंग्रेजी के नोटिंग का हिंदी रूपांतर है जबकि प्रारूपण अंग्रेजी के ड्राफ्टिंग का। टिप्पण छोटे-छोटे वाक्य में लिखा जाता है। जबकि प्रारूपण किसी पत्र आदि का होता है।

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