संदेश

अक्तूबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आदिकालीन साहित्य के पतन के कारण

हर युग में साहित्यिक प्रवृत्तियाँ बदलती रहती हैं । आदिकालीन साहित्य के पतन के लिए निम्न कारण प्रमुख रहे : अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन राजाओं का यशोगान व स्तुतिगान ही प्रमुख लक्ष्य राष्ट्रीयता का अभाव सामान्य जन जीवन की उपेक्षा कल्पना की अधिकता ऐतिहासिकता का अभाव प्रामाणिकता का अभाव संदिग्धता

आदिकाल की प्रवृत्तियाँ

आदिकाल की रचनाओं के आधार पर इस युग के साहित्य में निम्नलिखित प्रवृत्तियाँ दिखाई पड़ती हैं :- ऐतिहासिक काव्यों की प्रधानता : ऐतिहासिक व्यक्तियों के आधार पर चरित काव्य लिखने का चलन हो गया था । जैसे - पृथ्वीराज रासो, परमाल रासो, कीर्तिलता आदि । यद्यपि इनमें प्रामाणिकता का अभाव है । लौकिक रस की रचनाएँ : लौकिक-रस से सजी-संवरी रचनाएँ लिखने की प्रवृत्ति रही ; जैसे - संदेश-रासक, विद्यापति पदावली, कीर्तिपताका आदि । रुक्ष और उपदेशात्मक साहित्य : बौद्ध ,जैन, सिद्ध और नाथ साहित्य में उपदेशात्मकता की प्रवृत्ति है, इनके साहित्य में रुक्षता है । हठयोग के प्रचार वाली रचनाएँ लिखने की प्रवृत्ति इनमें अधिक रही । उच्च कोटि का धार्मिक साहित्य : बहुत सी धार्मिक रचनाओं में उच्चकोटि के साहित्य के दर्शन होते हैं ; जैसे - परमात्म प्रकाश, भविसयत्त-कहा, पउम चरिउ आदि । फुटकर साहित्य : अमीर खुसरो की पहेलियाँ, मुकरी और दो सखुन जैसी फुटकर (विविध) रचनाएँ भी इस काल में रची जा रही थी । युद्धों का यथार्थ चित्रण : वीरगाथात्मक साहित्य में युद्धों का सजीव और ह्रदयग्राही चित्रण हुआ है । कर्कश और ओजपूर्ण पदावली शस्त्रों की झ

आदिकाल की परिस्थितियाँ

राजनीतिक दृष्टि से यह युग भारतीय इतिहास में पतन और विघटन का युग है । सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात देश में एकछत्र शासन का अभाव हो गया था। राष्ट्र छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया । राजसत्ता अस्थिर हो गई । इन राज्यों के शासक आपस में मिथ्या शान और अभिमान में पड़कर लड़ने लगे । लड़ाइयों का प्रमुख उद्देश्य जर, जोरु और जमीन के लिए शौर्य-प्रदर्शन ही होता था । यह साधारण सा नियम बन गया था - जाकी बिटिया सुंदर देखी, ता ऊपर जाइ धरि तरवारी । कवि जगनिक ने निम्न पंक्तियों में क्षत्रिय के गुण गिना दिए - बारह बरिस लौ कूकर जीवै, और तेरह लौ जियै सियार। बरिस अठारह छत्री जीवै, आगे जीवन को धिक्कार ।। तात्पर्य यह है कि किसी न किसी बहाने राजाओं की तलवार म्यान से बाहर रहती थी । दूसरी ओर आपस की फूट में फँसे हुए हिंदू राजाओ पर पश्चिम की ओर से मुसलमानों ने भी आक्रमण करने आरंभ कर दिए थे । इस प्रकार यह युग आंतरिक अशांति एवं बाह्य आक्रमण से त्रस्त युग था । धार्मिक दृष्टि से इस युग में बौद्ध धर्म का ह्तास होने लगा था, शंकाराचार्य और कुमारिल भट्ट जैसे विद्वानों ने उनकी कमर तोड़ दी थी । ब्राहम्ण धर्म फिर से पनपने लगा

आदिकाल की लौकिक धारा के कवि और उनकी रचनाएँ

सिद्धों, नाथों एवं जैन कवियों के धार्मिक साहित्य से भिन्न अपभ्रंश साहित्य में एक धारा लौकिक साहित्य की भी है । इस धारा के कवियों में अब्दुर्रहमान और विद्यापति प्रमुख हैं । तो वहीं अमीर खुसरो ने पहेलियों, मुकरियों तथा दो-सखुनों की रचना की है, जिनमें कौतूहल तथा विनोद की दृष्टि होती है । लौकिक धारा के कवियों की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं :- अब्दुर्रहमान : संदेश रासक विद्यापति : कीर्तिलता, कीर्तिपताका कुशल लाभ : ढ़ोला मारु रा दूहा अमीर खुसरो : किस्सा चाहा दरवेश, खालिक बारी, दलपत विजय : खुमान रासो नरपति नाल्ह : बीसलदेव रासो शार्गंधर : हम्मीर रासो नल्ह सिंह भट्ट : विजयपाल रासो चंदबरदाई : पृथ्वी राज रासो जगनिक : परमाल रासो

आदिकाल की नाथ धारा के कवि और उनकी रचनाएँ

सिद्धों की योग-साधना नारी भोग पर आधारित थी । इसकी प्रतिक्रिया में नाथ-धारा का आविर्भाव माना जाता है । यह हठयोग पर आधारित मत है । आगे चलकर यह साधना रहस्यवाद के रूप में प्रतिफलित हुई । यह कहना गलत नहीं होगा कि नाथपंथ से ही भक्तिकाल के संतमत का विकास हुआ । इस धारा के प्रवर्त्तक गोरख नाथ हैं । नाथों की संख्या नौ होने के कारण ये नवनाथ कहलाए । इन नवनाथों की रचनाएँ निम्नानुसार हैं :- गोरखनाथ : पंचमासा, आत्मबोध, विराटपुराण, नरवैबोध, ज्ञानतिलक, सप्तवार, गोरखगणेश संवाद, सबदी, योगेश्वरी, साखी, गोरखसार, गोरखवाणी, पद शिष्या दर्शन (इनके १४ काव्यग्रंथ मिलते हैं ) । डॉ पीताम्बर बड़थ्वाल ने गोरखबानी नाम से इनकी रचनाओं का एक संकलन संपादित किया है । मत्स्येन्द्र या मच्छन्द्रनाथ : कौलज्ञान निर्णय, कुलानंदज्ञान-कारिका, अकुल-वीरतंत्र । जालंधर नाथ : विमुक्तमंजरी गीत, हुंकारचित बिंदु भावना क्रम । चर्पटनाथ : चतुर्भवाभिवासन चौरंगीनाथ : प्राण संकली, वायुतत्वभावनोपदेश गोपीचंद : सबदी भर्तृनाथ (भरथरीनाथ) : वैराग्य शतक ज्वालेन्द्रनाथ : अप्राप्य गाहिणी नाथ : अप्राप्य

आदिकाल की सिद्ध काव्य धारा के कवि और उनकी रचनाएँ

सिद्ध साहित्य : सिद्धों की संख्या ८४ मानी गई है । अधिकांश सिद्धों के नाम के पीछे पा जुड़ा हुआ है । इनकी भाषा मगही है । भक्ति काल की कई प्रवृत्तियों का जन्म सिद्ध साहित्य में ही हुआ है । रुढ़ियों का विरोध और अक्खड़पन सिद्धों की ही देन है । योग साधना के क्षेत्र में भी इनका प्रभाव है । कृष्ण भक्ति की मूल प्रवृत्तियों का जन्म भी यहीं से दिखाई देता है । आइए आज प्रमुख सिद्ध कवियों की रचनाओं को सूचीबद्ध करते हैं :- सरहपा : दोहाकोश, उपदेश गीति, द्वादशोपदेश, डाकिनीगुहयावज्रगीति, चर्यागीति, चित्तकोष अजव्रज गीति । इनके कुल ३२ ग्रंथ हैं । शबरपा : चर्यापद, सितकुरु, वज्रयोगिनी, आराधन-विधि । लुइपा : अभिसमयविभगं, तत्वस्वभाव दोहाकोष, बुद्धोदय, भगवदअमभिसय, लुइपा-गीतिका । डोभ्भिपा : अक्षरद्विकोपदेश, डोंबि गीतिका, नाड़ीविंदुद्वारियोगचर्या । इनके कुल २१ ग्रंथ हैं । कण्हपा : योगरत्नमाला, असबधदृष्टि, वज्रगीति, दोहाकोष, बसंत तिलक, कान्हपाद गीतिका । दारिकपा : तथतादृष्टि, सप्तमसिद्धांत, ओड्डियान विनिर्गत-महागयह्यातत्वोपदेश । शांतिपा : सुख दुख द्वयपरित्याग । तंतिपा : चतुर्योगभावना । विरुपा : अमृतसिद्ध, विरुपगीत

जैन धारा के मुख्य कवि और उनकी रचनाएँ

आदिकाल में निम्न चार धाराएँ मुख्यत: प्रवाहित रही : जैन धारा सिद्ध धारा नाथ धारा लौकिक धारा आज हम जैन धारा के कवियों और उनकी रचनाओं की जानकारी प्राप्त करते हैं : स्वयम्भू : १.पउम चरिउ ,२.रिट्ठणेमि चरिउ, ३.पचाम चरिउ , ४.स्वयम्भू छंद पुष्पदंत : महापुराण, णायकुमार चरिउ, जसहर चरिउ, कोश ग्रंथ हेमचंद्र सूरी : कुमारपाल चरित, हेमचंद्रशब्दानुशासन मुनि राम सिंह :पाहुड़ दोहा जोइन्दु : परमात्म प्रकाश धनपाल धक्कड़ : भविसयत कहा, बाहुबलि चरित सोमप्रभ सूरी : कुमारपाल प्रतिबोध मेरुतुंग : प्रबंध चिंतामणि धर्म सूरी : जम्बू स्वामी रास, स्थूलिभद्र रास देवसेजमणि : सुलोचना चरिउ मुनि कनकाभर : करकंड चरिउ धवल : हरिवंश पुराण वरदत्त :बैरसामि चरिउ हरिभद्र सूरी : णाभिणाह चरिउ धाहिल : पउमसिरी चरिउ लक्खन : जिवदत्त चरिउ श्यधू : धन कुमार चरित

आदिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ

आज हम आदिकालीन कवियों की प्रमुख कृतियों का विवरण प्रस्तुत कर रहें हैं : अब्दुर्रहमान : संदेश रासक नरपति नाल्ह : बीसलदेव रासो (अपभ्रंश हिंदी) चंदबरदायी : पृथ्वीराज रासो (डिंगल-पिंगल हिंदी) दलपति विजय : खुमान रासो (राजस्थानी हिंदी) जगनिक : परमाल रासो शार्गंधर : हम्मीर रासो नल्ह सिंह : विजयपाल रासो जल्ह कवि : बुद्धि रासो माधवदास चारण : राम रासो देल्हण : गद्य सुकुमाल रासो श्रीधर : रणमल छंद , पीरीछत रायसा जिनधर्मसूरि : स्थूलिभद्र रास गुलाब कवि : करहिया कौ रायसो शालिभद्रसूरि : भरतेश्वर बाहुअलिरास जोइन्दु : परमात्म प्रकाश केदार : जयचंद प्रकाश मधुकर कवि : जसमयंक चंद्रिका स्वयंभू : पउम चरिउ योगसार :सानयधम्म दोहा हरप्रसाद शास्त्री : बौद्धगान और दोहा धनपाल : भवियत्त कहा लक्ष्मीधर : प्राकृत पैंगलम अमीर खुसरो : किस्सा चाहा दरवेश, खालिक बारी विद्यापति : कीर्तिलता, कीर्तिपताका, विद्यापति पदावली (मैथिली)

आदिकाल का नामकरण

आदिकाल (सम्वत् 1050 से सम्वत् 1375 ) विभिन्न विद्वानों ने आदिकाल के विभिन्न नाम सुझाएँ हैं : 1.      मिश्र बंधु : आदि काल 2.      आचार्य रामचंद्र शुक्ल : वीरगाथा काल 3.      महावीर प्रसाद द्विवेदी : बीजवपन काल 4.      राहुल सांस्कृत्यायन : सिद्ध-सामंत युग 5.      डॉ रामकुमार वर्मा : संधिकाल व चारणकाल 6.      आचार्य हजारी प्रसाद : आदिकाल सर्वमान्य नाम आदिकाल या वीरगाथाकाल ।