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रीति काव्य परम्परा

यूं तो भक्तिकाल में ही कृपाराम ने "हिततंगिणी" और नंददास ने "रस-मंजरी" लिख कर हिंदी में लक्षण ग्रंथों का सूत्रपात कर दिया था । लेकिन केशव को ही हिंदी का सर्वप्रथम रीति-गंथकार स्वीकार किया जाता है , क्योंकि सर्वप्रथम उन्हीं ने "कवि-प्रिया" और "रसिक प्रिया" ग्रंथ लिख कर हिंदी में रस और अलंकारों का विस्तृत विवेचन किया था, किंतु केशव के बाद लगभग 50 वर्ष तक रीति ग्रंथों की परम्परा में और कोई कवि नहीं आया । बाद में जो लोग इस परम्परा में आए भी,उन्होंने केशव की प्रणाली को नहीं अपनाया । इसलिए कुछ आलोचक केशव को सर्वप्रथम आचार्य स्वीकार करने में संकोच करते हैं ।  केशव के बाद इस क्षेत्र में आचार्य चिंतामणी आए । उन्होंने "पिंगल", "रस-मंजरी", "श्रृंगार-मंजरी" और "कवि-कल्पतरु" की रचना कर इस विषय का व्यापक प्रतिपादन किया । उनका विवेचन अत्यंत सरल एवं स्पष्ट है । इसके बाद आने वाले कवियों ने भी इन्हीं की शैली को अपनाया । इसलिए प्राय: इन्हें ही हिंदी साहित्य में रीति-ग्रंथों का सूत्रपात करने वाला प्रथम आचार्य स्वीकार किया जाता